आज की जनरेशन के बारे में सोचता हूं तो मेरी रूह कांप जाती है
मौका मिले तो इस बारे में सोचिएगा जरूर
मेरी उम्र 75 साल है और मैं उत्तरप्रदेश सरकार से रिटायर्ड कर्मचारी हूं
2 बेटे 2 बेटियों के साथ मेरा भरा परिवार है बेटियों की शादी हो गई है और मेरे बेटे एक पुणे में और एक बैंगलोर में कंपनी में अच्छी नौकरी करते हैं
साधारण तौर पर देखा जाए तो मैं एक सफल इंसान हूं
लेकिन मेरी रूह कांप गई जब मैने खुद को भी एक भीड़ का हिस्सा पाया ।
कुछ दिन पहले मेरे समधी की मृत्यु हुई 70 साल की उम्र में सुबह 5 बजे मेरे घर खबर आई
तो मैं और मेरी पत्नी जल्दी से गए ।
मेरे समधी भी एक अच्छे और संपन्न परिवार से थे वो आपस में 5 भाई थे सभी के 2 2 बेटे और बेटियां थी
पर समधी के केवल एक लड़का था और 2 बेटियां
जब हम वहां पहुंचे तो पाया कुल 60 70 लोग आस पास खड़े हैं
बॉडी की अंतिम तैयारी चल रही थी, क्यों की अंत्यष्टि स्थल घर से काफी दूर था तो एक गाड़ी की गई
जब गाड़ी में जाने की बात आई तो समधी का बेटा मैं और उनके चाचा का छोटा बेटा और एक दोस्त गाड़ी में बैठे
वहां पहुंचने पर 4 लोगो को आवश्यकता थी जो पार्थिव शरीर को सड़क से उठा कर घाट तक ले जा सकें
गाड़ी वाला बोलता है जल्दी करो और जगह जाना है तो उसका हिसाब करके उसे छोड़ा गया ।
अब जब लोगो को फोन किया गया तो कुछ ने उठाया कुछ ने बोला अभी जाम में फसे हैं
वहां सिर्फ 3 लोग थे और एक मैं जो की बुजुर्ग होने के कारण कंधा देने में असमर्थ था ।
कुछ देर इंतजार करने पर एक लड़के को 1000 रुपया देके घाट तक ले आया गया क्यों की 3 लोग पार्थिव शरीर नही उठा सकते थे ।
कुछ समय बाद बाकी लोग भी घाट आना शुरू हुए और जो घर पर 60 लोग थे
वहां आते आते सिर्फ 9 लोग बचे थे,
अब अंतिमसंस्कार का ठेका घाट पर दिया गया
और उसके बाद सभी घर को चल दिए
जो बात मुझे सबसे ज्यादा झंकझोर दी वो समधी की मृत्यु नही थी बल्कि ये की इतना भरा परिवार होते हुए भी सिर्फ 9 लोग घाट तक आए
किराए का कंधा दिया गया
उनके बेटे के अलावा उनके भाई थे जो सभी लगभग 70 से 80 साल के थे
लेकिन उन भाइयों के बेटे कोई मुंबई में कोई पुणे में था
लेकिन किसी ने अपने चाचा के अंतिम समय में आना से ज्यादा जरूरी ऑफिस का काम करना समझा
सभी संपन्न है पैसे वाले हैं भारत की किसी भी कोने में यदि हवाई जहाज से आए तो 3 घंटे से ज्यादा नही लगता।
लेकिन किसी ने भी आना जरूरी नही समझा स्थिति ऐसी है की कंधा देने वाला नही है कोई भी ।
ये बात मुझे अंदर से खाई जा रही है की इस जमाने में लोग पैसे के लिए इतना ज्यादा आतुर हैं की उनके लिए सिर्फ और सिर्फ काम जरूरी है
तरक्की पाने के चक्कर में लोग परिवार को भूल रहे हैं
मुझे याद है जब हमारे समय में किसी की मृत्यु होती थी तो कोई कितना भी जरूरी काम करे उसे छोड़ कर अंतिमसंस्कर में शामिल होता था ।
घर के बेटे और बेटियां इसी बहाने 13 दिन तक घर में रहते थे जिससे लोगो को मानसिक तौर पर सपोर्ट मिलता था ।
लेकिन आज के समय मे ये सब भूल गए हैं की हमारा अस्तित्व हमारे परिवार से है ।
ये बात मुझे अंदर से खाई जा रही थी की क्या आज का यही सत्य है हम सिर्फ नाम के लिए परिवार हैं
या ये सब सिर्फ मेरे मन का वहम है आप जरूर बताइएगा
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