Thursday, May 22, 2025

Either / भगवान जीव को चुनते हैं या जीव भगवान को चुनता है। .

                                           भगवान जीव को चुनते हैं या जीव भगवान को चुनता है।

यह एक गहरा आध्यात्मिक प्रश्न है जिसका उत्तर विभिन्न दार्शनिक और धार्मिक परंपराओं में अलग-अलग तरीके से दिया जाता है। इसे समझने के लिए हम कुछ प्रमुख दृष्टिकोणों पर विचार कर सकते हैं:


1. भगवान जीव को चुनते हैं

कई परंपराओं में यह माना जाता है कि ईश्वर ही अपने भक्तों का चुनाव करते हैं। यह विचार अक्सर इस बात पर आधारित होता है कि ईश्वर सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ हैं। वे जानते हैं कि कौन उन्हें पाने की सच्ची इच्छा रखता है और कौन उनके बताए मार्ग पर चलने में सक्षम है। इस दृष्टिकोण के अनुसार, ईश्वर अपनी कृपा से किसी जीव को भक्ति, ज्ञान या किसी विशेष कार्य के लिए चुनते हैं। यह एक तरह का 'दैवीय चुनाव' है।

  • उदाहरण: कुछ भक्त मानते हैं कि उन्हें भक्ति का मार्ग इसलिए मिला क्योंकि ईश्वर ने उन्हें चुना। भगवद गीता में भी भगवान कृष्ण कहते हैं कि जो भक्त उन्हें निरंतर भजते हैं, वे स्वयं उनके पास आते हैं और उन्हें बुद्धि देते हैं जिससे वे भगवान को प्राप्त कर सकें।

2. जीव भगवान को चुनता है

दूसरा दृष्टिकोण यह है कि जीव अपनी स्वतंत्र इच्छा से भगवान को चुनता है। मनुष्य के पास सोचने, समझने और निर्णय लेने की क्षमता है। वह अपने कर्मों और चुनाव के माध्यम से भगवान की ओर बढ़ सकता है। इस विचार के अनुसार, जब जीव सच्चे हृदय से भगवान की शरण लेता है, उनकी भक्ति करता है, और उनके दिखाए मार्ग पर चलता है, तो वह वास्तव में भगवान को चुन रहा होता है।

  • उदाहरण: एक व्यक्ति जब विभिन्न देवी-देवताओं में से किसी एक को अपना इष्टदेव चुनता है और उनकी भक्ति करता है, तो यह जीव द्वारा भगवान को चुनने का एक उदाहरण है। आध्यात्मिक पथ पर चलने का निर्णय लेना, सत्संग में शामिल होना, या सेवा कार्य करना - ये सब जीव की अपनी इच्छा से भगवान की ओर बढ़ने के तरीके हैं।

3. दोनों एक साथ होते हैं (परस्पर निर्भरता)

कई आध्यात्मिक गुरु और ग्रंथ मानते हैं कि यह चुनाव एकतरफा नहीं होता, बल्कि दोनों तरफ से होता है और एक-दूसरे पर निर्भर करता है।

  • जब जीव भगवान की ओर एक कदम बढ़ाता है, तो भगवान उसकी ओर सौ कदम बढ़ाते हैं।
  • यह ठीक वैसा ही है जैसे एक बच्चे का अपनी माँ के प्रति प्रेम और माँ का अपने बच्चे के प्रति प्रेम। बच्चा माँ के पास जाता है, लेकिन माँ पहले से ही बच्चे का ध्यान रख रही होती है।
  • भगवान अपनी अहैतुकी कृपा से सभी जीवों पर प्रेम बरसाते हैं, लेकिन जो जीव उस प्रेम को स्वीकार करने के लिए अपना हृदय खोलता है, वही उनसे जुड़ पाता है।

निष्कर्ष

तो, सवाल "भगवान जीव को चुनते हैं या जीव भगवान को चुनता है?" का कोई एक सीधा जवाब नहीं है। यह दोनों प्रक्रियाओं का एक साथ होना है:

  • ईश्वर की ओर से - उनकी असीम कृपा और ज्ञान जिसके द्वारा वे जीवों को सही मार्ग पर लाने का अवसर देते हैं।
  • जीव की ओर से - उसकी स्वतंत्र इच्छा, प्रयास और सच्ची लगन जिसके द्वारा वह उस अवसर को स्वीकार करता है और ईश्वर की ओर बढ़ता है।

यह एक सुंदर संतुलन है जहां दैवीय कृपा और मानवीय प्रयास दोनों मिलकर आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

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